भारतीय कृषि आज एक नए युग में प्रवेश कर रही है, जहाँ तकनीक और टिकाऊ समाधानों की भूमिका पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। ऐसे समय में बायोचार तकनीक एक क्रांतिकारी बदलाव लाने की क्षमता रखती है। केंद्रीय मंत्री श्री नितिन गडकरी के अनुसार, यह तकनीक किसानों के लिए “गेम चेंजर” साबित हो सकती है।
बायोचार तकनीक क्या है?
बायोचार एक कार्बन-समृद्ध ठोस पदार्थ होता है, जिसे बायोमास (जैविक अपशिष्ट) को ऑक्सीजन की कमी में उच्च तापमान पर गर्म करके तैयार किया जाता है। यह एक प्रकार का जैविक कोयला होता है, जिसे मिट्टी में मिलाकर उसकी उर्वरता, नमी क्षमता और सूक्ष्मजीवों की सक्रियता को बढ़ाया जाता है।
बायोचार मशीन कैसे काम करती है?

- बायोमास डालना: लकड़ी, फसल अवशेष, गोबर आदि मशीन में डाले जाते हैं।
- हीटिंग चेंबर: इसे बंद करके अंदर ऑक्सीजन की कमी में उच्च तापमान पर जलाया जाता है (पायरोलिसिस प्रक्रिया)।
- गैस निकासी: उपयोगी गैसों को संग्रहित या पुनः प्रयोग किया जा सकता है।
- बायोचार तैयार: ठंडी होने के बाद ठोस काला बायोचार बाहर निकाला जाता है।
किसानों के लिए फायदे
| लाभ | विवरण |
|---|---|
| ✅ मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि | बायोचार मिट्टी की बनावट सुधारता है और पोषक तत्वों को लंबे समय तक बनाए रखता है। |
| ✅ जलधारण क्षमता बढ़ाता है | यह मिट्टी में पानी को बनाए रखता है जिससे सूखा प्रभावित क्षेत्रों में खेती आसान हो जाती है। |
| ✅ खाद की खपत कम करता है | बायोचार के कारण उर्वरकों की जरूरत कम होती है जिससे लागत घटती है। |
| ✅ कार्बन स्टोरेज | यह वातावरण से कार्बन को हटाकर मिट्टी में संग्रहित करता है — पर्यावरण के लिए लाभदायक। |
| ✅ टिकाऊ खेती | यह मिट्टी के सूक्ष्मजीवों की सक्रियता को बढ़ाता है, जिससे जैविक खेती में मदद मिलती है। |
पर्यावरणीय लाभ
- ग्रीनहाउस गैसों में कमी: बायोचार उत्पादन से कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी गैसों की रिहाई घटती है।
- कचरे का पुनः उपयोग: कृषि अपशिष्ट जलने की बजाय उपयोगी उत्पाद में बदलता है।
- जलवायु परिवर्तन से लड़ाई: कार्बन को दीर्घकालिक रूप से जमीन में बांधकर ग्लोबल वार्मिंग में योगदान घटाता है।
कहाँ और कैसे मिलती है बायोचार यूनिट?
- यह तकनीक अब कई भारतीय कंपनियाँ और स्टार्टअप्स बना रही हैं।
- राज्य सरकारें और कृषि विभाग इसके लिए सब्सिडी भी दे रहे हैं।
- गांवों में एफपीओ (Farmer Producer Organization) के माध्यम से इसे सामूहिक रूप से लगाया जा सकता है।
लागत और लाभ
| विषय | अनुमानित विवरण |
|---|---|
| यूनिट लागत | ₹50,000 से ₹3 लाख (आकार और क्षमतानुसार) |
| दैनिक उत्पादन | 50–500 किलो बायोचार |
| बाजार में मांग | जैविक खेती, बागवानी, रियल एस्टेट में उपयोग |
| संभावित कमाई | ₹10–20 प्रति किलो तक |
सरकार का योगदान
- PM Kusum योजना, RKVY योजना, और State Agri Missions जैसी योजनाएं बायोचार उपकरणों के लिए सहायता देती हैं।
- NITI Aayog और ICAR भी इस पर रिसर्च और प्रचार कर रहे हैं।
FAQs
Q1. क्या बायोचार और कोयले में कोई अंतर है?
हाँ, कोयला ऊर्जा उत्पादन के लिए जलाया जाता है जबकि बायोचार मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए उपयोग होता है।
Q2. क्या यह हर मिट्टी पर काम करता है?
बायोचार सभी प्रकार की मिट्टी (रेतीली, दोमट, काली) में उपयोगी है, लेकिन मात्रा और मिश्रण में भिन्नता हो सकती है।
Q3. क्या छोटे किसान भी इसका उपयोग कर सकते हैं?
हाँ, छोटे आकार की मशीनें कम लागत में उपलब्ध हैं और समूह में मिलकर उपयोग करना अधिक लाभदायक होता है।
Q4. बायोचार को खेत में कैसे मिलाएं?
इसे गोबर खाद, कंपोस्ट या मिट्टी में मिलाकर खेत में फैला सकते हैं। एक एकड़ के लिए लगभग 100–150 किलो पर्याप्त है।
निष्कर्ष
बायोचार तकनीक आज के समय में भारतीय किसानों के लिए एक सशक्त समाधान है — जो खेती को अधिक लाभदायक, पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ और आधुनिक बनाता है। सरकार, उद्योग और किसानों को मिलकर इसे अपनाना चाहिए ताकि भारत की कृषि व्यवस्था ज्यादा समृद्ध और आत्मनिर्भर बने।
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